Thursday, February 24, 2011

Tuesday, February 15, 2011

सच है...

चेहरे के ऊपर चेहरे है
जो दिखता है, वही बिकता है
कैसे ना माने ये सच है?
जब शीशा भी झूट बोलता है..
जो मीठा है, वो कड़वा है
जो सच्चा है, वो लुटता है
जो काम करे, वो गधा है
जो 'जी हा' करे वो आगे बढे..
यहाँ बाजार रोज़ सजता है
दिल भी सस्ते में बिकता है
एक ले तो दूसरा मुफ्त
कभी-कभी तो एक के साथ चार भी चलता है
झूठी हसी हसते है
मनो षडयत्र रचते है
कैसे हम विश्वास कर ले
जब शीशा भी झूट बोलता है..
झूट बोला तो क्या गलत किया?
सच बोला तो क्या पा लिया ?
क्या सही और  क्या गलत ?
बस यही समझना बाकी है...
जहा खुलेगा वही धमाका
ऐसा ही होता है सच.....

Friday, February 11, 2011

बचपन

बचपन की वो यादे
कुछ खट्टी कुछ मीठी
वो एक रुपये का चटमोला
वो ऊच नीच का पापड़ा
कभी खिलोनो पर दिल आ जाना
तो कभी टॉफी के लिए रोना
माँ का वो रोज़ सुबह चिल्लाना
और हमारा पांच मिनट का वही बहाना
स्कूल जाते हुए टाइम-टेबल लगाना
फिर भी किताबे घर छोड़ चले आना
पेंसिल रोज़ खो कर स्कूल से आना
फिर घर आकर नयी कहानी सुनाना
छुटी के भी नए बहाने
कभी पेट दर्द तो कभी  बुखार का आना
जैसे भी हो आपनी बात मनवाना
गलियों में वो शोर मचाना
खेल खेल में लड़ना मनाना
समय की फिक्र ना होना
जब खेल में मन लग जाना
क्या  मजे के  थे वो दिन
कुछ खट्टे कुछ मीठे वो दिन.....

Delhi-6

view from the Jama Masjid minar