छोटी थी जब नटखट थी में
सहेलियों के संग नाचती गाती
गुडियों के में ब्याह रचाती
हर जन्मदिन नयी जीद में करती
नये कपडे हर त्यौहार सिलवाती
जीद करके हमेशा अपनी बात मानवती
चाहे जैसे भी हो स्कूल की छुटी करवाती
मन ना करता पड़ने का मेरा
ब़स सपनो की दुनिया में जीती
फिर नदी सा चलता ये जीवन
इस मोड़ पर ले आया मुझे
आज बड़ी हुई तो लगता है मुझे
काश समय को थाम में पाऊ
पर धारा है ये जीवन
ना जाने कहा ले जाएगा
एक दिन फिर ऐसा आयेगा
जब याद करुगी इन पलों को भी में
और समय फ़िर आगे ओर निकल जयेगा .....
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